Thursday 3 March 2011

चाह्त

चाह्त
एक फूल चछोटा सा अनजाना सा , अनदेखा साशूल भरे पथ पर दुबका सा
हर
मन
सहमा सा घ्बराया सा पल धध्कन तेज हुई मै सन्शय घिर आईकभी नज़्रर उठ गई
कभी
करने
उस पार छितिज़ के दो पंखुरी लगी नमनहर आहट पेरो कीकर देती थी़ विचलित
क्या
हे! ईश , मेरे पढ्ती हें हाथों की रेखायेंक्या खुशबू बिखराये बिना
या
गुज़र
है अन्त लिखा मेरा कोई मीत इधर से जायेऔर भेंट दिया जांऊ
या
मुझ्को
प्रेमी ------को कोई चुन ले -------भी

या
उन
चद जाऊं--------मंदिर की वेदी पर बिछ जांऊ राहों परजिन राहों से गुजरे
तब
रच
अर्थी कोई अपने की बीज़ मेरा हो साथक जायेगी , परिभाशा फूलों कीमुऱ्झाने से पहलेहो पाऊ ईश- किर्तग्यउमा ( मन के मनके )

3 comments:

  1. फॉण्ट साईज ठीक करना होगा और साथ ही वर्तनी एवं लाईन ब्रेक पर ..(पोस्ट करने के पहले यदि पूर्वालोकन (प्रीव्यू) दबायें तो दिखाता है कि कैसे छपेगी...)

    शायद बेहतर प्रस्तुति को यह सुझाव मददगार साबित हो...

    सीधे टंकण की बजाय पहले वर्ड पैड में टंकित कर कॉपी पेस्ट करें तो बेहतर.

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  2. हिन्दी में टाइप करने का सुन्दर प्रयास।

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  3. अच्छे प्रयास के साथ सुधार के अनेकों गुंजाईश

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